भारतीय शेयर बाजार, खासकर सेंसेक्स (SENSEX) और निफ्टी (NIFTY), देश की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा हैं। इन दोनों सूचकांकों में होने वाले उतार-चढ़ाव सीधे तौर पर निवेशकों के मूड, देश और दुनिया की आर्थिक स्थिति, तथा कई अन्य फैक्टर्स पर निर्भर करते हैं। इस आर्टिकल में हम सरल भाषा में समझेंगे कि हाल ही में सेंसेक्स और निफ्टी में क्यों उतार-चढ़ाव देखे जा रहे हैं, कौन-कौन सी वजहें इसके पीछे हैं, और ये उतार-चढ़ाव निवेशकों को कैसे प्रभावित करते हैं।
सेंसेक्स और निफ्टी क्या हैं?
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सेंसेक्स: बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का प्रमुख शेयर सूचकांक, जिसमें 30 बड़े और स्थापित कंपनियों के शेयर शामिल होते हैं।
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निफ्टी: नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का प्रमुख सूचकांक, जिसमें 50 प्रमुख कंपनियों के शेयर होते हैं।
ये दोनों सूचकांक भारतीय शेयर बाजार की सेहत का आईना होते हैं। जब ये ऊपर जाते हैं तो माना जाता है कि बाजार में सकारात्मक माहौल है, और जब नीचे आते हैं तो नकारात्मक माहौल को दर्शाते हैं।
हालिया उतार-चढ़ाव के मुख्य कारण
1. वैश्विक आर्थिक स्थिति
2025 के मध्य में विश्व अर्थव्यवस्था में कई बदलाव देखे गए हैं। अमेरिका, चीन और यूरोप जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार धीमी हुई है, जिससे निवेशकों में अनिश्चितता बढ़ी है। वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंकाएं भारतीय शेयर बाजार को भी प्रभावित करती हैं।
2. मुद्रा स्फीति (Inflation) और RBI की नीतियां
भारत में मुद्रास्फीति की दर लगातार नजर रखी जाती है। अगर महंगाई बढ़ती है, तो भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ब्याज दरें बढ़ा सकता है। उच्च ब्याज दरों से कंपनियों के लिए कर्ज महंगा हो जाता है, जिससे उनकी आय घट सकती है और बाजार नकारात्मक प्रतिक्रिया देता है। अभी हाल में RBI ने ब्याज दरों में कुछ बढ़ोतरी की है, जिसके कारण निवेशकों ने सतर्कता दिखाई है।
3. तेल और कच्चे माल की कीमतें
तेल और अन्य कच्चे माल की कीमतों में तेजी या गिरावट का असर सीधे तौर पर इंडेक्स पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, तेल की बढ़ती कीमतें भारत के लिए महंगी होती हैं, जिससे महंगाई बढ़ती है और शेयर बाजार में नकारात्मक असर पड़ता है। 2025 में तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से बाजार में अस्थिरता देखी गई है।
4. सरकारी नीतियों और बजट घोषणाएं
सरकार द्वारा घोषित नई नीतियां जैसे टैक्स बदलाव, विदेशी निवेश को बढ़ावा देने वाले कदम, या सब्सिडी योजना, निवेशकों के विश्वास को बढ़ा या घटा सकते हैं। उदाहरण के लिए, हालिया बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस और डिजिटल इंडिया की पहल ने कुछ सेक्टर्स को प्रोत्साहित किया, जबकि कुछ सेक्टर्स पर कड़े नियमों के कारण दबाव भी बना।
5. विदेशी निवेश प्रवाह (FII और FPI)
विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) भारतीय बाजार में बड़े निवेशक होते हैं। इनके निवेश में उतार-चढ़ाव सीधे बाजार के मूड को प्रभावित करता है। अगर विदेशी निवेशक पैसा बाजार से निकालते हैं, तो शेयर की कीमतें गिर सकती हैं।
6. मुद्रास्फीति की आशंका और डॉलर की मजबूती
डॉलर के मुकाबले रुपए की कमजोरी और अमेरिकी डॉलर की मजबूती ने निवेशकों को सतर्क किया है। डॉलर की मजबूती से कच्चे माल के दाम बढ़ते हैं और यह भारत जैसे आयातक देशों के लिए महंगा पड़ता है।
हाल के उदाहरण और आंकड़े
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मई 2025 में, सेंसेक्स में लगभग 1200 अंकों की गिरावट देखी गई, जिसका मुख्य कारण अमेरिकी फेडरल रिजर्व की कड़ी मौद्रिक नीति और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता थी।
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निफ्टी भी इसी दौरान 17,200 के स्तर से गिरकर 16,000 के करीब आ गया।
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हालांकि, जून 2025 में सरकार की नई आर्थिक योजनाओं और सुधारों की घोषणा से बाजार में पुनः सुधार हुआ।
निवेशकों के लिए सुझाव
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लंबे समय तक निवेश करें — बाजार में उतार-चढ़ाव आम बात है, इसलिए लघु अवधि की गतिविधियों से घबराएं नहीं।
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डाइवर्सिफिकेशन (विविधता) — निवेश को विभिन्न सेक्टर्स और एसेट क्लास में विभाजित करें ताकि जोखिम कम हो।
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मार्केट ट्रेंड्स पर नजर रखें — आर्थिक खबरें, RBI की नीतियां, और वैश्विक आर्थिक संकेतकों पर ध्यान दें।
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प्रोफेशनल सलाह लें — यदि निवेश के लिए नए हैं तो वित्तीय सलाहकार की मदद जरूर लें।