आज की दुनिया में ऊर्जा और तकनीक के लिए रेयर अर्थ मिनरल्स की अहमियत तेजी से बढ़ रही है। हाल ही में अमेरिका और चीन के बीच राजनीतिक तनातनी ने इस बात को और स्पष्ट कर दिया कि तेल जितना ही महत्वपूर्ण अब रेयर अर्थ मिनरल्स भी बन चुके हैं। ये मिनरल्स सिर्फ स्मार्टफोन या इलेक्ट्रिक व्हीकल्स में ही नहीं, बल्कि हवाई जहाज, मिलिट्री इक्विपमेंट और मेडिकल डिवाइस में भी इस्तेमाल होते हैं।
इस लेख में हम जानेंगे:
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कैसे अमेरिका और चीन ने तेल और मिनरल्स को लेकर अपनी रणनीति बनाई।
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रेयर अर्थ मिनरल्स के उत्पादन और प्रोसेसिंग में तकनीकी चुनौतियाँ।
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ऑस्ट्रेलिया और भारत की भूमिका इस वैश्विक खेल में।
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यूरोप और अमेरिका के प्रयास और उनकी सीमाएँ।
अमेरिका, तेल और वैश्विक शक्ति
इतिहास गवाह है कि अमेरिका ने हमेशा तेल के लिए राजनीतिक और सैन्य कदम उठाए हैं।
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ईरान का तख़्ता पलट (1951)
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प्रधानमंत्री मोहम्मद मुसादिक ने ईरान के तेल पर नियंत्रण खुद करने की कोशिश की।
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अमेरिका और ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियों ने मिलकर तख़्ता पलट करवाया।
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खाड़ी युद्ध (1990-91)
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इराक ने कुवैत पर कब्ज़ा किया। अमेरिका ने ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म शुरू किया।
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आधिकारिक कारण: कुवैत की संप्रभुता की रक्षा।
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असली उद्देश्य: अमेरिकी ऊर्जा आपूर्ति को सुरक्षित रखना।
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पर्शियन गल्फ में 1980 का दशक
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ईरान-इराक युद्ध के दौरान अमेरिका ने नौसैनिक मौजूदगी बढ़ाई।
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तेल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए रणनीति।
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इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि तेल हमेशा अमेरिका के वैश्विक हितों का केंद्र रहा है।
रेयर अर्थ मिनरल्स का उदय
जैसे तेल के बिना आधुनिक दुनिया अधूरी है, वैसे ही रेयर अर्थ मिनरल्स की बिना टेक्नोलॉजी अधूरी है।
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स्मार्टफोन, विंड टरबाइन, इलेक्ट्रिक कारों के लिए जरूरी।
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चुंबकीय, उच्च तापमान सहने वाले और घिसाई-रोधी गुण वाले एलिमेंट्स।
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चीन उत्पादन और रिफाइनिंग में वैश्विक नेता।
क्यों चीन है प्रभुत्वशाली?
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दुनिया के 90% रेयर अर्थ मिनरल्स का रिफाइनिंग चीन में होता है।
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अमेरिकी जरूरत का 80%, यूरोप की 98% जरूरत चीन से पूरी होती है।
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ट्रंप प्रशासन के दौरान चीन ने टैरिफ रोकने और ब्लैकमेल जैसी स्थितियाँ बनाईं।
अमेरिका और यूरोप की चुनौतियाँ
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पहले अमेरिका और यूरोप भी उत्पादन करते थे, लेकिन पर्यावरणीय नियमों और लागत बढ़ने के कारण उत्पादन कम हुआ।
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तकनीकी और वित्तीय निवेश के बावजूद प्रोसेसिंग में पिछड़ गए।
ऑस्ट्रेलिया की नई पहल
ऑस्ट्रेलिया रेयर अर्थ मिनरल्स की आपूर्ति बढ़ाने की योजना में आगे आया है।
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इलुका माइनिंग कंपनी नई फैक्ट्रियाँ लगा रही है।
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ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने $1 बिलियन का लोन भी घोषित किया।
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अनुमान: इस दशक के अंत तक मांग 50% से 170% तक बढ़ सकती है।
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उद्देश्य: यूरोप और अमेरिका की सप्लाई चेन में प्रभाव डालना।
तकनीकी और रिफाइनिंग चुनौतियाँ
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रेयर अर्थ मिनरल्स के अयस्क में कई अन्य एलिमेंट्स मौजूद होते हैं।
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तकनीकी प्रक्रिया जटिल, महंगी और ऊर्जा-सघन है।
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पर्यावरणीय नियम और प्रदूषण नियंत्रण भी बड़े चुनौती हैं।
उदाहरण: लोहा बनाम रेयर अर्थ
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लोहा बनाने की प्रक्रिया तकनीकी रूप से सरल है।
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रेयर अर्थ में विभिन्न एलिमेंट्स का मिश्रण इसे और जटिल बनाता है।
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हर एलिमेंट का अलग मेल्टिंग और बॉइलिंग पॉइंट होता है।
चीन की रणनीति और वैश्विक प्रभुत्व
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1980 में चीन ने सरकारी फंडिंग के साथ स्टेट-ओन कंपनियों को समर्थन दिया।
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उच्च तकनीकी उत्पाद जैसे मैग्नेट्स, फास्फोरस और अलॉयस तैयार किए।
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सीधे यूरोप और अन्य देशों को सप्लाई शुरू।
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2012 में जापान में सनकाको द्वीप विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया कि चीन अपने प्रभुत्व को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है।
यूरोप और अमेरिका की प्रतिक्रिया
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यूरोपियन यूनियन ने 2023 में Critical Raw Materials Act पास किया।
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लक्ष्य: 2030 तक कम से कम 40% प्रोसेसिंग ईयू के अंदर।
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अमेरिका के पास कुछ प्लांट्स हैं लेकिन क्षमता पर्याप्त नहीं।
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वैश्विक मांग इतनी तेज़ है कि चीन की निर्भरता तुरंत कम नहीं होगी।
भारत और रेयर अर्थ मिनरल्स
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तमिलनाडु और केरल में भंडार मौजूद।
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तकनीक और प्रोसेसिंग क्षमता सीमित।
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14 अगस्त 2025 को Reuters ने खबर दी कि IREL ने जापान और दक्षिण कोरिया से मदद मांगी।
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भारत 400-500 मीट्रिक टन नियोमियम ऑक्साइड का उत्पादन करता है।
संभावनाएँ
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जापान और दक्षिण कोरिया सहयोग करेंगे तो उत्पादन बढ़ सकता है।
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वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की भागीदारी संभव।
निष्कर्ष
रेयर अर्थ मिनरल्स अब तेल जितना ही महत्वपूर्ण बन गए हैं।
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चीन वैश्विक नेता, अमेरिका और यूरोप प्रयासरत।
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ऑस्ट्रेलिया और भारत नई भूमिका निभा सकते हैं।
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तकनीक, निवेश और पर्यावरणीय नियमों ने उत्पादन चुनौतीपूर्ण बना दिया।
FAQ Section
Q1: रेयर अर्थ मिनरल्स क्या हैं?
A1: ये ऐसे 17 तत्व हैं, जो उच्च तकनीकी उपकरणों, इलेक्ट्रिक वाहन और मिलिट्री उपकरणों में इस्तेमाल होते हैं।
Q2: चीन रेयर अर्थ मिनरल्स में क्यों अग्रणी है?
A2: चीन ने 1980 से खदानें, प्रोसेसिंग और उच्च तकनीकी उत्पादन पर निवेश किया, जिससे वह दुनिया में प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गया।
Q3: भारत की भूमिका क्या हो सकती है?
A3: भारत में तमिलनाडु और केरल में भंडार हैं। IREL जापान और दक्षिण कोरिया के साथ सहयोग कर उत्पादन बढ़ाने की योजना बना रही है।
Q4: अमेरिका और यूरोप क्यों पीछे रह गए?
A4: पर्यावरणीय नियमों, महंगी प्रक्रिया और कम निवेश के कारण उत्पादन घट गया।
Q5: ऑस्ट्रेलिया का योगदान क्या होगा?
A5: ऑस्ट्रेलिया इलुका कंपनी के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने की योजना में है, जिससे वैश्विक सप्लाई चेन प्रभावित हो सकती है।