पुष्यमित्र शुंग इतिहास

मौर्य से शुंग तक: बृहद्रथ की हत्या, हेलियोडोरस स्तंभ और भारतीय इतिहास की अनकही कहानी

मगध, आज के बिहार का वह हिस्सा, जो हजारों सालों तक भारत में सत्ता का गढ़ रहा। इस जमीन को कई वंशों के रक्त से सींचा गया। कभी बेटे ने पिता को मारा और सत्ता हासिल की, तो कभी आक्रांता पश्चिम के दर्रे को चीरते हुए यहां तक पहुंचे, और कभी दक्षिण से नदियों को पार करके।

इसी धरती पर मौर्यों ने भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य खड़ा किया। लेकिन सम्राट अशोक की कलिंग विजय के बाद मौर्यों के अभियान थम से गए। धम्म की नीति से राज्य चला, लेकिन सत्ता शौर्य मांगती है। 232 ईसा पूर्व में अशोक की मृत्यु के बाद पूरा मौर्य साम्राज्य किसी टूटी हुई माला के सरकते मनकों की तरह बिखरने लगा।


मौर्य साम्राज्य का पतन और सत्ता संघर्ष

दो-चार पीढ़ियां गुजरीं। फिर एक दिन एक सेनापति ने अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ का सिर धड़ से अलग करके मौर्यों की कहानी पर पूर्ण विराम लगा दिया।
कौन था वो जिसने मौर्य शासन का अंत किया?
कौन था वो जिसने बौद्ध भिक्षुओं के सिर कलम करने पर 100 दीनार का इनाम रखा था?

वो सेनानी जिसने कभी राजा की पदवी नहीं ली। जिसके वंशजों ने गरुड़ स्तंभ स्थापित किया। जिसके दौर में महाभाष्य और मनुस्मृति लिखी गई।

नमस्ते और स्वागत है! मैं अभिषेक, और आज हम तारीख में बात करेंगे शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग की।


अशोक के बाद भारत की बदलती तस्वीर

यह वही दौर था जब उत्तर पश्चिम के दर्रों से मध्य एशियाई यवन अपने घोड़ों पर हुंकार भरते हुए मौर्य सत्ता को सीधी चुनौती दे रहे थे।
अशोक के कमजोर उत्तराधिकारियों के शासन से जनता भी बदलाव चाह रही थी।

एक के बाद एक आघात मगध के दरकते साम्राज्य को और कमजोर करते जा रहे थे। इसी संदर्भ में महाभाष्य में पतंजलि लिखते हैं:
“अरुणत यवन साकेतम्, अरुणत यवन माध्यमिकम्”
यानी यवनों ने अयोध्या और मगध तक आक्रमण करने शुरू कर दिए थे।


185 ईसा पूर्व: बृहद्रथ की हत्या और शुंग वंश का उदय

इस समय मौर्य सत्ता की कमान एक दुर्बल शासक बृहद्रथ के हाथों में थी। करीब 801 रोज बाद, बृहद्रथ पाटलिपुत्र (आज का पटना) में अपनी सेना का निरीक्षण कर रहे थे।
उसी मौके पर उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने अपने राजा का सिर धड़ से अलग करके सत्ता की लगाम अपने हाथों में ले ली।

और इसी के साथ, 185 ईसा पूर्व में मौर्य वंश का अंत हुआ और एक नए राजवंश के तौर पर शुंग वंश का उदय हुआ।


पुष्यमित्र शुंग की पृष्ठभूमि और जीवन

  • वंश: भारद्वाज वंश

  • गोत्र: कश्यप गोत्र

  • मूल स्थान: इतिहासकारों के बीच मतभेद, कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं

  • शासनकाल: 36 साल

  • राजधानी: पाटलिपुत्र और विदिशा (दूसरी राजधानी)

पुष्यमित्र के दौर में महाभाष्य लिखने वाले पतंजलि भी समकालीन थे। पतंजलि के शब्द:
“इ पुष्यमित्रम यजायामः”
यानी “हम पुष्यमित्र के लिए यज्ञ करते हैं।”


पुष्यमित्र शुंग और वैदिक यज्ञ परंपरा

पुष्यमित्र शुंग के यज्ञों का उल्लेख कई जगहों पर मिलता है:

  • अग्निष्टोम यज्ञ

  • अश्वमेध यज्ञ

  • राजसूय यज्ञ

  • वाजपेय यज्ञ

अश्वमेध यज्ञ के सबसे बड़े प्रमाण अयोध्या से मिले धनवेद स्तंभ शिलालेख हैं, जिन्हें बाबू जगन्नाथ दास रत्नाकर ने खोजा और बाद में दयाराम साहनी ने पढ़ा।


पुष्यमित्र और बौद्ध मठों पर विवाद

तिब्बती मूल के तारानाथ द्वारा लिखे गए दिव्यावदान में पुष्यमित्र को बौद्धों के क्रूर उत्पीड़क के रूप में दिखाया गया है।

  • दावा है कि उन्होंने मठ जलाए और बौद्ध भिक्षुओं की हत्या पर 100 स्वर्ण दीनार का इनाम रखा।

  • कैंब्रिज हिस्ट्री ऑफ इंडिया में ई.जे. रैपसन भी यही कहते हैं कि पुष्यमित्र ने कुकु टाराम विहार को नष्ट करने की योजना बनाई।

लेकिन, कुछ प्रमाण इसके उलट हैं:

  • भरहुत स्तूप और सांची स्तूप का निर्माण शुंग काल में हुआ।

  • विंसेंट स्मिथ अपनी किताब अर्ली इंडियन हिस्ट्री में लिखते हैं कि उत्पीड़न के आरोप ठोस साक्ष्यों पर आधारित नहीं हैं।


हेलियोडोरस स्तंभ और शुंग कला का स्वर्ण युग

विदिशा में स्थित हेलियोडोरस स्तंभ इंडो-ग्रीक और भारतीय संस्कृति के समन्वय का प्रतीक है।

  • यह स्तंभ हिंद-यवन राजदूत हेलियोडोरस ने शुंग राजा भागद्र के शासनकाल में बनवाया।

  • स्तंभ पर लिखे शिलालेख बताते हैं कि उस समय वैष्णव धर्म का प्रसार तेज़ी से हो रहा था।


शुंग काल की कला, साहित्य और संस्कृति

  • कला: मथुरा, भरहुत, और सांची की मूर्तियों में शुंग शैली के तत्व दिखते हैं।

  • साहित्य: कालिदास की मालविकाग्निमित्रम पुष्यमित्र के बेटे अग्निमित्र के बारे में है।

  • संस्कृति: वैदिक, बौद्ध और यवन परंपराओं का संगम।


FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

1. पुष्यमित्र शुंग कौन थे?

मौर्य साम्राज्य के सेनापति जिन्होंने बृहद्रथ की हत्या कर शुंग वंश की स्थापना की।

2. हेलियोडोरस स्तंभ क्यों खास है?

क्योंकि यह भारतीय और ग्रीक संस्कृतियों के संगम और वैष्णव धर्म के विस्तार का प्रतीक है।

3. क्या पुष्यमित्र ने बौद्धों का दमन किया था?

इतिहासकारों में मतभेद है। तारानाथ जैसे ग्रंथ उन्हें उत्पीड़क मानते हैं, लेकिन भरहुत स्तूप और सांची स्तूप इस दावे को कमजोर करते हैं।

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