दोस्तों, पृथ्वीराज द थर्ड, जिन्हें पृथ्वीराज चौहान के नाम से जाना जाता है, भारतीय इतिहास के महानतम राजपूत शासकों में से एक थे। यह एक ऐसे शूरवीर योद्धा थे जिनकी वीरता और पराक्रम की कहानियाँ इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई हैं।
पृथ्वीराज चौहान के बारे में ज्यादातर जानकारी हमें मिडीवल लेजेंड्री क्रॉनिकल्स से मिलती है। बैटल ऑफ तराइन के कुछ मुस्लिम अकाउंट्स के अलावा, हिंदू और जैन ऑथर्स द्वारा लिखे कई मिडीवल काव्य जैसे पृथ्वीराज विजय, हमीर महाकाव्य और पृथ्वीराज रासो में इन्हें मेंशन किया गया है।
ऐसा माना जाता है कि पृथ्वीराज रासो को लिखने वाले चंद्रबरदाई उनके कोर्ट पोएट थे, लेकिन इसमें कई इंसिडेंट्स को बढ़ा-चढ़ाकर लिखा गया। इसलिए इसकी ऑथेंटिसिटी पर हिस्टोरियंस का डाउट है।
चाइल्डहुड और अर्ली लाइफ
पृथ्वीराज चौहान का जन्म चौहान वंश के राजा सोमेश्वर और रानी कपूरा देवी के घर 1166 सीई में हुआ था। चौहान डायनेस्टी की कैपिटल अजमेर थी और उनका शासन राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब के कुछ हिस्सों में फैला था।
पृथ्वीराज विजय के अनुसार, पृथ्वीराज चौहान को करीब छह भाषाओं का ज्ञान था। पृथ्वीराज रासो के अनुसार उन्हें मैथमेटिक्स, मेडिसिन, हिस्ट्री, मिलिट्री, फिलॉसफी, पेंटिंग और थियोलॉजी में महारत हासिल थी। वे तीरंदाजी (आर्चरी) के भी चैंपियन थे।
1177 में अपने पिताजी की मृत्यु के बाद, पृथ्वीराज राजगद्दी पर बैठते हैं, उस समय उनकी आयु सिर्फ 11 वर्ष थी। इसलिए उनकी माँ कपूरा देवी रीजेंट बन जाती हैं और शुरुआती वर्षों तक शासन संभालती हैं। इस दौरान उनके साथ कई एबल मिनिस्टर्स भी थे, जिनमें कदंबवास और भुवनाई कमला प्रमुख थे।
पड़ोसी राज्यों के साथ रिलेशनशिप
1180 में पृथ्वीराज शासन का पूरा कंट्रोल अपने हाथों में ले लेते हैं। इस समय कई हिंदू राजा उन्हें चुनौती देने लगते हैं।
नागार्जुना का विद्रोह
नागार्जुना, पृथ्वीराज के कजिन, उनके कोरोनेशन के खिलाफ विद्रोह करते हैं और गुड़ापुरा (आज का गुरुग्राम) का फोर्ट कब्जा कर लेते हैं। पृथ्वीराज इस फोर्ट का घेरा डालकर इसे जीतते हैं, जो उनकी शुरुआती मिलिट्री अचीवमेंट्स में गिना जाता है।
भादनकास और चंदेला संघर्ष
भादनकास (भरतपुर क्षेत्र) और चंदेला किंगडम के साथ भी उनके कई युद्ध हुए। मदनपुर के इन्क्रिप्शंस के अनुसार, 1182 में पृथ्वीराज ने चंदेला किंग परमार्दी को डिफीट किया। इसके अलावा, गुजरात के चालुक्य राजा भीमाटू और कन्नौज के गाडवालाज़ के साथ संघर्ष में भी उनकी उपस्थिति दर्ज है।
राइवलरी, जयचंद और प्रेम कहानी
कन्नौज के गाडवाला वंश के राजा जयचंद और उनकी बेटी संयोगिता की कहानी अत्यंत प्रसिद्ध है।
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जयचंद ने राजसूय यज्ञ कर खुद को चक्रवर्ती सम्राट घोषित किया।
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पृथ्वीराज ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया।
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संयोगिता, पृथ्वीराज की वीरता से प्रभावित होकर उनसे प्रेम करने लगी।
स्वयंवर का रोमांचक किस्सा:
जयचंद ने पृथ्वीराज को स्वयंवर में आमंत्रित नहीं किया और द्वारपाल की जगह उनकी मूर्ति लगा दी। संयोगिता, पृथ्वीराज को पत्र लिखकर अपनी भावनाएँ प्रकट करती हैं। अंततः, स्वयंवर के दिन पृथ्वीराज संयोगिता को लेकर जयचंद के सामने खुली चुनौती देते हैं।
मोहम्मद गौरी और बैटल ऑफ तराइन
फर्स्ट बैटल ऑफ तराइन (1190)
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गौरी ने पंजाब के तबरहिंद पर कब्जा किया।
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पृथ्वीराज ने राजपूत सेना से फर्स्ट बैटल जीतकर गौरी को घायल कर दिया।
सेकंड बैटल
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गौरी 1,20,000 घुड़सवारों और 10,000 तीरंदाजों के साथ लौटा।
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उन्होंने स्ट्रैटेजिक डिवीजन बनाकर राजपूत सेना को थकाया।
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जयचंद ने गौरी का साथ दिया, जिससे पृथ्वीराज हार गए।
यूनिक इनसाइट:
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अगर जयचंद ने पृथ्वीराज का साथ दिया होता, तो भारत में मुस्लिम शासक शायद सत्ता में कभी नहीं आते।
मृत्यु और अनिश्चितताएँ
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बारे में अलग-अलग कथाएँ हैं:
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पृथ्वीराज रासो: अंधा करके तीरंदाजी से गौरी को मारना।
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अजमेर कॉइंस और जैन सोर्सेज: बंदी बना कर मारना।
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हमीर महाकाव्य: खाने का त्याग करके मृत्यु।
निष्कर्ष:
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चाहे मृत्यु का तरीका कोई भी हो, बैटल ऑफ तराइन के बाद पृथ्वीराज लंबे समय तक जीवित नहीं रहे।
पृथ्वीराज चौहान की विरासत
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महान राजपूत शासक और वीर योद्धा
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फिल्मों और टीवी सीरीज़ में चित्रित (सम्राट पृथ्वीराज चौहान, वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान)
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अजमेर, दिल्ली और अन्य जगहों पर मेमोरियल्स बनाए गए
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आज भी उनकी वीरता भारतीयों के लिए प्रेरणास्त्रोत
FAQ
Q1: पृथ्वीराज चौहान का जन्म कब हुआ?
A: 1166 सीई में अजमेर में।
Q2: बैटल ऑफ तराइन में पृथ्वीराज क्यों हारे?
A: गौरी की रणनीति, जयचंद का साथ और राजपूत सेना की थकावट मुख्य कारण थे।
Q3: पृथ्वीराज चौहान की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?
A: नागार्जुना पर विजय, चंदेला और भादनकास से संघर्ष, कई युद्धों में अद्वितीय वीरता।
Q4: क्या पृथ्वीराज और संयोगिता का प्रेम वास्तविक था?
A: ऐतिहासिक प्रमाण सीमित हैं; यह मुख्यतः पृथ्वीराज रासो में वर्णित है।