मास्की शिलालेख

मास्की शिलालेख1 से जानें सम्राट अशोक की सच्चाई कैसे मिली

भारत के प्राचीन इतिहास में सम्राट अशोक का नाम गर्व से लिया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अशोक के बारे में मिली जानकारी कितनी प्रमाणिक है? मास्की शिलालेख की खोज ने इस रहस्य को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे मास्की शिलालेख ने सम्राट अशोक के शासनकाल और उनके इतिहास को फिर से स्थापित किया।


मास्की शिलालेख और सम्राट अशोक: इतिहास की पुनर्खोज

14वीं सदी का दिल्ली और फिरोज शाह तुगलक का शासन

14वीं सदी में दिल्ली में फिरोज शाह तुगलक का शासन था। एक दिन फिरोजशाह कोटला में घूमते हुए एक अनोखी वस्तु देखी गई, जो हरियाणा के टोपरा कला गांव से लाई गई थी। यह वस्तु महाभारत के भीम की छड़ी बताई जाती थी। फिरोजशाह ने इसे अपने किले के बीचों-बीच गढ़वाया।

लेकिन 20वीं सदी में पता चला कि वह छड़ी नहीं, बल्कि सम्राट अशोक का शिलालेख है।

सम्राट अशोक: इतिहास के गर्भ में

अशोक का शासनकाल लगभग 268 से 232 ईसा पूर्व माना जाता है। वे मौर्य साम्राज्य के महान शासक थे। हालांकि, उनके बारे में जानकारी 18वीं सदी तक अस्पष्ट और किवदंतियों जैसी थी। कई बौद्ध ग्रंथों में अशोक का उल्लेख था, लेकिन इतिहास को प्रमाणित करने के लिए ठोस साक्ष्यों की जरूरत थी।

आर्कियोलॉजी और जेम्स प्रिंसेप का योगदान

आधुनिक इतिहास की खोजों में आर्कियोलॉजी का बड़ा योगदान रहा है। जेम्स प्रिंसेप, जो 19वीं सदी में भारत में थे, उन्होंने सिक्कों और शिलालेखों का अध्ययन किया। उन्होंने ब्राह्मी लिपि को डिकोड किया और शिलालेखों में ‘देव नाम प्रिय’ और ‘पियदस्सी’ नाम मिले।

प्रिंसेप की खोजों ने दिखाया कि ये अभिलेख मौर्य राजवंश के सम्राटों से संबंधित हैं।

श्रीलंका से मिली पुष्टि

श्रीलंका के बौद्ध ग्रंथ दीपवंश के थाई संस्करण में पियदस्सी का उल्लेख चंद्रगुप्त मौर्य के पोते और बिंदुसार के पुत्र के रूप में मिलता है। इसने प्रिंसेप की थ्योरी को और मजबूती दी कि ‘पियदस्सी’ सम्राट अशोक ही थे।

कर्नाटक की हट्टी गोल्ड माइंस और मास्की शिलालेख

कर्नाटक के रायचूर जिले में हट्टी नामक एक प्राचीन सोने की खदान है। यहां 1915 में अंग्रेज़ इंजीनियर सी. बीडन ने एक शिलालेख खोजा जिसे मास्की शिलालेख कहा जाता है। यह शिलालेख 2000 साल पुराना है और इसमें ‘देव नाम प्रिय अशोक’ शब्द उकेरे हुए हैं।

मास्की शिलालेख का महत्व

  • यह पहला अभिलेख था जिसमें अशोक का नाम स्पष्ट रूप से लिखा था।

  • इसने अशोक के अस्तित्व और उनके शासन का प्रमाण दिया।

  • इससे पहले मिले साक्ष्य सीमित थे या अस्पष्ट थे।

  • मास्की शिलालेख ने इतिहास के पन्नों पर नए तथ्य लिखे।


निष्कर्ष

मास्की शिलालेख की खोज ने सम्राट अशोक के इतिहास को नई दिशा दी है। यह शिलालेख न केवल एक प्राचीन अभिलेख है, बल्कि भारतीय इतिहास के एक भूले हुए राज को उजागर करता है। आज के इतिहास प्रेमियों के लिए यह खोज एक प्रेरणा है कि इतिहास की गुत्थियां धैर्य और खोज से ही सुलझती हैं।

आपको यह इतिहास का सफर कैसा लगा? क्या आप और भी ऐसी रोचक ऐतिहासिक कहानियां जानना चाहते हैं? कृपया कमेंट में अपनी राय जरूर दें।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top