कर्नाटक सरकार ने घरेलू कामगारों—जैसे नौकरानी, कुक्स, ड्राइवर और नैनी—के लिए ‘रेट कार्ड’ आधारित न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुरक्षा योजना लागू करने की तैयारी की है। इस कदम का उद्देश्य न सिर्फ़ उनकी आय को स्थिर करना है बल्कि उन्हें मेडिकल बेनिफिट्स, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा भी उपलब्ध कराना है।
फोकस कीवर्ड: कर्नाटक रेट कार्ड घरेलू कामगारों के लिए
भारत में घरेलू कामगारों की वर्तमान स्थिति
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भारत में अनुमानित 5 करोड़ से अधिक घरेलू कामगार हैं (ILO और NSSO आंकड़े)।
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इनमें से बड़ी संख्या महिलाएं हैं, जो अक्सर अनौपचारिक सेक्टर में काम करती हैं।
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समस्या:
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फिक्स वेतन नहीं – शहर और मोहल्ले के हिसाब से अलग-अलग।
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कोई मेडिकल या पेंशन सुविधा नहीं।
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शोषण – कई बार लंबे घंटे काम करने पर भी उचित भुगतान नहीं मिलता।
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कर्नाटक का नया बिल: मुख्य प्रावधान
डोमेस्टिक वर्कर्स (सोशल सिक्योरिटी एंड वेलफेयर) बिल के अनुसार:
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रेट कार्ड व्यवस्था
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हर काम (जैसे खाना बनाना, झाड़ू-पोछा, बच्चों की देखभाल) का एक फिक्स मूल्य तय होगा।
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काम के घंटे और टास्क के हिसाब से वेतन तय होगा।
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5% वेलफेयर फीस
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नियोक्ता (घर मालिक/एजेंसी) को वेतन का 5% योगदान करना होगा।
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यह पैसा राज्य स्तर पर बने डोमेस्टिक वर्कर्स वेलफेयर फंड में जाएगा।
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अनिवार्य पंजीकरण
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सभी घरेलू कामगारों और नियोक्ताओं को पंजीकरण करना होगा।
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इससे सरकार को डेटाबेस + बैकग्राउंड वेरिफिकेशन दोनों मिलेंगे।
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वेलफेयर बोर्ड का गठन
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कामगार प्रतिनिधि, नियोक्ता, यूनियन और राज्य सरकार—सभी शामिल होंगे।
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बोर्ड मेडिकल खर्च, पेंशन, शिक्षा सहायता, दुर्घटना मुआवज़ा और अंतिम संस्कार खर्च जैसी सुविधाओं की निगरानी करेगा।
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विशेषज्ञों की राय और तुलनात्मक अध्ययन
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श्रम विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम अनौपचारिक सेक्टर को औपचारिक ढांचे में लाने का एक बड़ा प्रयास है।
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तेलंगाना और केरल ने भी इसी तरह के बिल पेश किए थे, लेकिन कर्नाटक का मॉडल डिजिटल पंजीकरण और वेलफेयर फंड पर अधिक फोकस करता है।
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अंतरराष्ट्रीय उदाहरण:
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फिलीपींस और ब्राजील में घरेलू कामगारों को लंबे समय से सोशल सिक्योरिटी + पेंशन मिल रही है।
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ILO का “Domestic Workers Convention, 2011” भी ऐसे ही प्रावधानों पर ज़ोर देता है।
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इससे कामगारों को क्या लाभ होगा?
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न्यूनतम वेतन की गारंटी → शोषण की संभावना कम होगी।
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मेडिकल सहायता → दुर्घटना या बीमारी में मदद।
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पेंशन → वृद्धावस्था में आर्थिक सुरक्षा।
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डेटाबेस और रजिस्ट्रेशन → सुरक्षा, पारदर्शिता और बेहतर पॉलिसी-निर्माण।
नियोक्ताओं पर क्या असर पड़ेगा?
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हर नियोक्ता को डिजिटल पोर्टल पर वेतन डिटेल अपलोड करनी होगी।
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यदि वेतन और वेलफेयर फीस में गड़बड़ी मिली तो पेनाल्टी लगेगी।
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शहरी मध्यवर्गीय परिवारों के लिए यह अतिरिक्त 5% खर्च हो सकता है, लेकिन लंबी अवधि में यह कामगारों की स्थिरता सुनिश्चित करेगा।
संभावित चुनौतियाँ
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क्रियान्वयन – भारत में कई बार अच्छी नीतियां ज़मीन पर लागू नहीं हो पातीं।
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भ्रष्टाचार और एजेंसियों की भूमिका – यह देखना होगा कि वेलफेयर फंड सही तरीके से उपयोग हो।
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ग्रामीण क्षेत्र – अभी बिल का फोकस शहरी इलाकों पर है। ग्रामीण कामगारों तक लाभ पहुंचाने के लिए अलग रणनीति चाहिए।
FAQs (SEO Rich Section)
Q1: क्या कर्नाटक रेट कार्ड सिर्फ़ नौकरानी और कुक्स के लिए है?
नहीं, इसमें ड्राइवर, नैनी, पार्ट-टाइम और फुल-टाइम सभी घरेलू कामगार शामिल होंगे।
Q2: 5% वेलफेयर फीस कौन देगा?
नियोक्ता यानी घर मालिक या सेवा प्रदाता।
Q3: क्या यह पेंशन की गारंटी देगा?
हाँ, पंजीकृत कामगारों को पेंशन, मेडिकल सहायता और दुर्घटना मुआवज़ा जैसी सुविधाएं मिलेंगी।
निष्कर्ष: कर्नाटक रेट कार्ड घरेलू कामगारों के लिए क्यों अहम है?
कर्नाटक का यह बिल घरेलू कामगारों की सालों पुरानी असुरक्षा और शोषण की समस्या को संबोधित करता है। यह न केवल न्यूनतम वेतन और पेंशन सुनिश्चित करेगा बल्कि घरेलू कामगारों को पहली बार एक औपचारिक सामाजिक सुरक्षा ढांचे से जोड़ेगा।
अगर यह सफल हुआ तो कर्नाटक मॉडल पूरे भारत के लिए एक ब्लूप्रिंट बन सकता है।
Takeaway: यह बिल सिर्फ़ घरेलू कामगारों का जीवन बेहतर नहीं करेगा, बल्कि भारतीय श्रम बाज़ार को और पारदर्शी व मानवीय बनाएगा।