नई दिल्ली:
भारत अपनी वायुसेना को भविष्य की लड़ाइयों के लिए तैयार करने की दिशा में लगातार तेजी से काम कर रहा है। इसी कड़ी में जापान की एक पुरानी लेकिन हाई-टेक फाइटर जेट परियोजना अब भारतीय वायुसेना के लिए किसी खजाने से कम नहीं साबित हो रही है। जापान का I3 फाइटर प्रोग्राम भले ही 2022 में बंद हो गया हो, लेकिन इसमें तैयार की गई तकनीकें भारत के स्वदेशी AMCA प्रोग्राम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकती हैं।
क्या था जापान का I3 फाइटर प्रोग्राम?
I3 यानी Integrated, Intelligent, Instantaneous — यह जापान की एक महत्वाकांक्षी 6वीं पीढ़ी के फाइटर जेट की परियोजना थी, जिसका मकसद मौजूदा मित्सुबिशी F-2 जेट्स की जगह लेना था। हालांकि, साल 2022 में जापान ने यह प्रोजेक्ट बंद कर दिया और ब्रिटेन व इटली के साथ मिलकर ‘Global Combat Air Programme (GCAP)’ का हिस्सा बन गया।
लेकिन इस प्रोग्राम में डेवलप की गई टेक्नोलॉजी आज भी सुरक्षित है, और यही भारत के लिए एक सुनहरा अवसर बनकर उभरी है।
AMCA को क्या-क्या मिलेगा जापान की तकनीक से?
1. रडार से अदृश्यता (Stealth) और बढ़ेगी:
जापान ने I3 प्रोग्राम के तहत सिलिकॉन कार्बाइड (SiC) और मेटा-मैटेरियल्स का इस्तेमाल किया था, जिससे जेट्स की रडार पर पकड़ लगभग नामुमकिन हो गई थी। भारत पहले ही अपने AMCA प्रोजेक्ट में रडार-अवशोषित मटेरियल्स का उपयोग कर रहा है, लेकिन जापानी तकनीक से यह क्षमता और उन्नत हो सकती है।
2. हाई-थ्रस्ट इंजन से बढ़ेगी ताकत:
I3 में IHI XF9-1 नाम का एक शक्तिशाली टर्बोफैन इंजन विकसित किया गया था, जो थ्रस्ट-वेक्टरिंग की क्षमता से लैस था। भारत के AMCA Mk1 में भले ही GE का F414 इंजन लगेगा, लेकिन Mk2 के लिए एक स्वदेशी हाई-थ्रस्ट इंजन की जरूरत होगी। XF9-1 की तकनीक इसमें गेमचेंजर साबित हो सकती है।
3. एडवांस रडार और मिशन सिस्टम:
I3 में गैलियम नाइट्राइड (GaN) आधारित AESA रडार विकसित किया गया था। भारत भी इस दिशा में आगे बढ़ रहा है, और जापान की तकनीक से इसकी स्पीड और सटीकता बढ़ सकती है। साथ ही, ‘क्लाउड शूटिंग’ जैसी AI-ड्रिवन नेटवर्क युद्ध प्रणाली भारत के AMCA को ड्रोन और दूसरे हथियारों के साथ समन्वय में काम करने की ताकत दे सकती है।
भारत के लिए कैसे बनेगा I3 टेक्नोलॉजी गेम-चेंजर?
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समय और लागत की बचत: I3 की तकनीकों का इस्तेमाल करके भारत अपने फाइटर जेट प्रोजेक्ट्स की स्पीड और क्वालिटी को बेहतर बना सकता है।
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फ्लाई-बाय-लाइट टेक्नोलॉजी: इससे जेट्स की इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर क्षमता में बड़ा सुधार होगा।
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स्वदेशी इंजन प्रोग्राम को बढ़ावा: XF9-1 की मदद से भारत का इंजन विकास कार्यक्रम भी तेज हो सकता है।
6वीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स का सपना अब होगा सच
I3 प्रोजेक्ट में लेजर और हाई-पावर माइक्रोवेव वेपन्स पर भी रिसर्च की गई थी। ये तकनीकें भारत को Directed Energy Weapons (DEW) बनाने में मदद कर सकती हैं — जो 6वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की एक खास पहचान होती है।
भारत और जापान की बढ़ती रणनीतिक साझेदारी को देखते हुए यह तकनीकी सहयोग दोनों देशों के लिए फायदेमंद हो सकता है। इससे भारत बहुत जल्दी 6th जनरेशन फाइटर जेट से लैस हो सकता है।
निष्कर्ष:
जहां जापान ने I3 प्रोजेक्ट को भले ही बंद कर दिया हो, लेकिन इसकी छोड़ी गई तकनीकें आज भारत के लिए फाइटर जेट टेक्नोलॉजी में क्रांति लाने का काम कर रही हैं। आने वाले सालों में इंडियन एयरफोर्स न सिर्फ आत्मनिर्भर होगी, बल्कि दुनिया की सबसे एडवांस वायुसेनाओं की कतार में खड़ी होगी।
