भारत में लाखों लोग अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते हैं। लेकिन जब असली ज़रूरत पड़ती है, तो कई बार कंपनियाँ क्लेम रिजेक्ट कर देती हैं या अस्पताल कैशलेस इलाज देने से मना कर देते हैं। नतीजा—पॉलिसी होल्डर्स को भारी आर्थिक और मानसिक झटका झेलना पड़ता है।
🚨 संकट की जड़ कहाँ है?
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मार्च 2024 तक, 26,000 करोड़ रुपये के हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम रिजेक्ट किए गए।
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2023–24 में 11% क्लेम खारिज और 6% पेंडिंग रहे।
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देश के कई बड़े अस्पतालों ने हाल ही में बजाज एलियांस और नेवा बूपा जैसी कंपनियों के कैशलेस इलाज पर रोक लगा दी।
🏥 कैशलेस ट्रीटमेंट क्या है?
कैशलेस ट्रीटमेंट में मरीज को जेब से पैसे खर्च करने की ज़रूरत नहीं होती।
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अस्पताल सीधे बीमा कंपनी से अप्रूवल लेकर इलाज का खर्च क्लेम करता है।
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इससे मरीज को तुरंत पैसे का इंतज़ाम करने की टेंशन नहीं रहती।
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लेकिन अब कई अस्पताल बीमा कंपनियों से भुगतान दरों को लेकर असहमति जता रहे हैं और मरीजों को कैशलेस सुविधा से वंचित कर रहे हैं।
📉 क्यों घट रही है बीमा पर लोगों की भरोसा?
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इंश्योरेंस पेनिट्रेशन (GDP के मुकाबले बीमा पर खर्च) 2023–24 में घटकर 3.7% रह गया, जबकि वैश्विक औसत 7% है।
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लोग महंगी पॉलिसी तो खरीद रहे हैं, लेकिन क्लेम रिजेक्शन बढ़ने से भरोसा कमजोर हुआ है।
⚖️ IRDAI की सख्ती
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जुलाई 2025 में IRDAI ने 8 बड़ी बीमा कंपनियों को नोटिस भेजा।
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कारण: अनुचित क्लेम रिजेक्शन, देरी और ज़रूरत से ज्यादा पेपरवर्क।
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रिपोर्ट्स में सामने आया कि स्टार हेल्थ, केयर हेल्थ, नेवा बूपा, नेशनल इंश्योरेंस और न्यू इंडिया इंश्योरेंस के खिलाफ सबसे ज्यादा शिकायतें आईं।
❌ क्लेम रिजेक्शन की आम वजहें
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गलत जानकारी देना (नाम, उम्र, बीमारी)
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वेटिंग पीरियड में क्लेम करना
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पुरानी बीमारी छिपाना
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प्रीमियम न भरना (पॉलिसी लैप्स)
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देर से हॉस्पिटलाइजेशन की सूचना देना
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अधूरे दस्तावेज़
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सालाना सम-इंश्योर्ड राशि खत्म होना
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गलत डायग्नोसिस
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प्री-ऑथोराइजेशन न लेना
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पॉलिसी की शर्तें बदलना
⚖️ जब अदालत ने दिया ग्राहकों को इंसाफ
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कोयंबटूर (2022): कंपनी ने सर्जरी को “इमरजेंसी नहीं” बताकर क्लेम रिजेक्ट किया। कोर्ट ने पूरा क्लेम + मुआवजा दिलवाया।
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सूरत (2022): मोटापे की बीमारी छिपाने का बहाना बनाकर क्लेम रिजेक्ट हुआ। कोर्ट ने आदेश दिया कि बिना सबूत के कंपनी ऐसा नहीं कर सकती।
📊 पॉलिसी धारकों का अनुभव
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50% से ज्यादा पॉलिसी होल्डर्स का कहना है कि उनका क्लेम रिजेक्ट या अधूरा रहा।
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पिछले 3 साल में सिर्फ 25% लोगों को पूरा पैसा समय पर मिला।
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36% क्लेम सीधे रिजेक्ट हुए।
⚔️ अस्पताल बनाम बीमा कंपनियाँ
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मैक्स अस्पताल बनाम नेवा बूपा: भुगतान दरों को लेकर विवाद।
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बजाज एलियांस बनाम AHPI: 15,200 अस्पतालों में कैशलेस इलाज रोका गया।
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वजह: अस्पतालों का कहना है कि मेडिकल खर्च हर साल 7–8% बढ़ रहा है, लेकिन कंपनियाँ पुराने रेट पर भुगतान कर रही हैं।
✅ समाधान क्या हो सकते हैं?
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IRDAI को क्लेम रिजेक्शन पर सख्त मॉनिटरिंग करनी होगी।
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अस्पताल और बीमा कंपनियों के बीच स्टैंडर्ड रेट लिस्ट लागू करनी होगी।
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ग्राहकों को पॉलिसी खरीदते वक्त पारदर्शी शर्तें बताना अनिवार्य करना होगा।
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हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम में क्लियर टाइमलाइन लागू होनी चाहिए (जैसे 7 दिन में सेटलमेंट)।
🔑 निष्कर्ष
भारत का हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम क्राइसिस सिर्फ पॉलिसी धारकों के लिए नहीं, बल्कि पूरे हेल्थ सेक्टर के लिए चुनौती है। अगर तुरंत सुधार नहीं हुए, तो लोगों का बीमा पर भरोसा और घटेगा।
📌 FAQs (SEO के लिए)
Q1. भारत में हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम रिजेक्शन क्यों बढ़ रहा है?
👉 क्लेम रिजेक्शन की मुख्य वजह गलत जानकारी, अधूरे दस्तावेज़ और अस्पताल–बीमा कंपनियों का विवाद है।
Q2. कैशलेस ट्रीटमेंट क्या है और क्यों बंद हो रहा है?
👉 कैशलेस ट्रीटमेंट में मरीज को जेब से पैसे नहीं देने पड़ते। लेकिन कंपनियाँ और अस्पताल भुगतान दरों को लेकर सहमत नहीं हो पा रहे।
Q3. अगर क्लेम रिजेक्ट हो जाए तो क्या करें?
👉 उपभोक्ता अदालत (Consumer Forum) में केस दर्ज कर सकते हैं। कई मामलों में अदालत ने मरीजों के पक्ष में फैसला दिया है।