घर में मंदिर की दिशा वास्तु: क्यों ज़रूरी है नियम मानना?
भारतीय संस्कृति में पूजा घर को घर का सबसे पवित्र स्थान माना गया है। अगर मंदिर को वास्तु शास्त्र के अनुसार सही दिशा और स्थान पर बनाया जाए, तो घर में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-समृद्धि आती है। वहीं गलत दिशा में बने मंदिर से मानसिक तनाव और बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।
पूजा घर कहाँ बनाना शुभ है?
-
उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) – घर में मंदिर रखने के लिए यह सबसे शुभ मानी जाती है।
-
अगर जगह न हो, तो उत्तर या पूर्व दिशा भी शुभ विकल्प हैं।
-
दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम और शौचालय के पास मंदिर बनाने से बचना चाहिए।
मंदिर की ऊँचाई और रंग
-
मंदिर की ऊँचाई हमेशा ज़मीन से थोड़ी ऊपर होनी चाहिए, सीधे फर्श पर न रखें।
-
मंदिर के आसपास सफेद, हल्का पीला या हल्का गुलाबी रंग शुभ माना जाता है।
-
गहरे और काले रंगों से बचना चाहिए।
मूर्तियों की स्थिति और नियम
-
भगवान की मूर्तियां उत्तर-पूर्व में पूर्वमुखी रखनी चाहिए।
-
एक ही देवता की एक से अधिक मूर्तियां न रखें।
-
मूर्तियों की ऊँचाई 2 इंच से 9 इंच तक शुभ मानी जाती है।
-
पूजा घर के दरवाज़े के सामने जूते-चप्पल न रखें।
घर में मंदिर की दिशा वास्तु से मिलने वाले लाभ
-
मानसिक शांति और एकाग्रता में वृद्धि
-
पारिवारिक सद्भाव और सकारात्मक सोच
-
घर में धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का वास
निष्कर्ष
घर में मंदिर की दिशा वास्तु के अनुसार तय करने से न केवल सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, बल्कि जीवन में सफलता और सुख-समृद्धि का मार्ग भी खुलता है। अगर आप घर में नया मंदिर बना रहे हैं या पुराने मंदिर को व्यवस्थित करना चाहते हैं, तो उपरोक्त वास्तु नियमों को ज़रूर अपनाएं।