पिछले कुछ वर्षों में आर्कटिक (Arctic) से जुड़ी खबरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में लगातार सुर्खियां बटोर रही हैं। कभी रूस की मिलिट्री गतिविधियां, कभी अमेरिका की रणनीतिक चालें और अब चीन का बढ़ता दखल — यह सब दर्शाता है कि आर्कटिक सिर्फ एक ठंडी और बर्फीली जगह नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति, व्यापार और संसाधनों की नई जंग का मैदान बन चुका है।
आर्कटिक क्यों खास है?
आर्कटिक दुनिया का वह इलाका है जहां साल भर मोटी बर्फ की चादर रहती है और तापमान इतना कम होता है कि हड्डियां तक जम जाएं। फिर भी यहां की रणनीतिक और आर्थिक अहमियत किसी भी देश को इसे नज़रअंदाज़ करने नहीं देती।
प्रमुख कारण
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प्राकृतिक संसाधनों का भंडार – दुनिया के 20% से अधिक अप्रयुक्त तेल और गैस भंडार
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खास खनिज – सोना, निकल, जिंक और रेयर अर्थ एलिमेंट्स
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नए समुद्री मार्ग – ग्लोबल वार्मिंग के कारण बर्फ पिघलने से शॉर्टकट रूट खुल रहे हैं
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मछली पकड़ने के नए अवसर – समुद्री जीवन उत्तर की ओर खिसक रहा है
इतिहास: आर्कटिक में पहली सैन्य टकराव की कहानियां
मार्च 1993 में अमेरिका की न्यूक्लियर सबमरीन USS Grayling और रूस की K-407 Novomoskovsk के बीच आर्कटिक महासागर की बर्फ के नीचे टक्कर हुई। यह कोई साधारण हादसा नहीं था, बल्कि दोनों देशों की परमाणु ताकत के बीच चल रही ‘कैट एंड माउस’ गेम का हिस्सा था।
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खतरा – अगर टक्कर मिसाइल मैगज़ीन से होती, तो परमाणु वारहेड समुद्र में बिखर सकते थे।
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इससे पहले 1992 में भी अमेरिकी और रूसी पनडुब्बियों की टक्कर हो चुकी थी।
ग्लोबल वार्मिंग और बदलता समीकरण
1990 के दशक से अब तक आर्कटिक की समुद्री बर्फ 7.6 ट्रिलियन मेट्रिक टन कम हो चुकी है।
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बर्फ पिघलने की रफ्तार: 57% तक बढ़ी
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नए रास्ते: नॉर्थवेस्ट पासेज (कनाडा) और नॉर्थ ईस्ट पासेज (रूस) लंबे समय तक खुलने लगे
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लाभार्थी देश: रूस और कनाडा
कौन-कौन हैं आर्कटिक के खिलाड़ी?
आर्कटिक क्षेत्र आठ देशों के बीच बंटा है:
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कनाडा, रूस, आइसलैंड, फिनलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क और अमेरिका
इनमें से पांच देशों (कनाडा, डेनमार्क, नॉर्वे, रूस, अमेरिका) की सीमा सीधे आर्कटिक महासागर से लगती है।
रूस की रणनीति
रूस के पास आर्कटिक महासागर के 53% तट पर नियंत्रण है और वह यहां अपनी सैन्य मौजूदगी तेज़ी से बढ़ा रहा है।
रूस के तीन बड़े सैन्य मकसद:
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न्यूक्लियर सबमरीन की सुरक्षा – कोला पेनिनसुला में तैनात बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों की रक्षा
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नाटो के खिलाफ संतुलन – नॉर्थ अटलांटिक और यूरोप के आर्कटिक हिस्से में दबदबा
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आर्थिक हितों की सुरक्षा – तेल-गैस प्रोजेक्ट और व्यापारिक रूट की रक्षा
अमेरिका की चालें
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अलास्का से मिलिट्री बेस
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कनाडा के सहयोग से आर्कटिक में पैठ
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ग्रीनलैंड खरीदने की कोशिश
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हर साल पनडुब्बी अभ्यास और बर्फ तोड़कर सतह पर आने वाली सैन्य एक्सरसाइज
चीन का दखल
हालांकि चीन का आर्कटिक से सीधा भू-संपर्क नहीं है, फिर भी वह खुद को “Near-Arctic State” कहता है।
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साझेदारी – रूस के साथ मिलकर जॉइंट पेट्रोल
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तकनीकी क्षमता – आइसब्रेकर शिप, वैज्ञानिक अनुसंधान स्टेशन
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उद्देश्य – संसाधनों तक पहुंच और नए समुद्री रूट में भागीदारी
विवाद का कारण
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सीमा विवाद – समुद्री बॉर्डर और एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन (EEZ) को लेकर ओवरलैपिंग दावे
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संसाधनों की दौड़ – तेल, गैस और खनिज भंडार
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सुरक्षा चिंता – नाटो बनाम रूस का सैन्य शक्ति प्रदर्शन
निष्कर्ष
आर्कटिक अब सिर्फ एक ठंडी और दूरस्थ जगह नहीं रही। यह 21वीं सदी की नई भू-राजनीतिक और आर्थिक जंग का केंद्र बन चुकी है। जैसे-जैसे बर्फ पिघलेगी, यहां के संसाधनों और रूट्स पर नियंत्रण पाने की होड़ और तेज़ होगी — और इस जंग में अमेरिका, रूस और चीन तीनों पूरी ताकत झोंक रहे हैं।