ट्रंप का नया फैसला: H-1B वीज़ा पर $100,000 शुल्क
H-1B वीज़ा को हमेशा से अमेरिका की टेक इंडस्ट्री के लिए अहम माना गया है। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के ताज़ा फैसले ने इस प्रोग्राम को नई दिशा दे दी है। अब हर H-1B आवेदन पर सालाना $100,000 (करीब 83 लाख रुपये) का शुल्क देना होगा। सवाल उठता है—क्या इससे विदेशी टैलेंट का अमेरिका में भविष्य बदल जाएगा?
H-1B वीज़ा क्या है?
H-1B वीज़ा एक नॉन-इमिग्रेंट वर्क वीज़ा है जिसे 1990 में बनाया गया था। इसका उद्देश्य था कि अमेरिकी कंपनियां उन क्षेत्रों (STEM – Science, Technology, Engineering, Math) में टैलेंट ला सकें जहाँ स्थानीय स्तर पर योग्य उम्मीदवारों की कमी है।
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हर साल लगभग 85,000 वीज़ा जारी होते हैं।
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Amazon, Microsoft, Google और Apple जैसी दिग्गज कंपनियां सबसे ज़्यादा लाभ उठाती हैं।
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कैलिफोर्निया H-1B वीज़ा धारकों का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है।
आलोचनाओं का इतिहास
हालाँकि, पिछले एक दशक से इस प्रोग्राम पर गंभीर सवाल उठाए जाते रहे हैं:
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कंपनियां H-1B कर्मचारियों को कम वेतन पर नियुक्त करती हैं।
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बड़ी संख्या में एंट्री-लेवल नौकरियों पर विदेशी कर्मचारियों की तैनाती होती है।
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आउटसोर्सिंग कंपनियां जैसे Infosys, Wipro, HCL और Cognizant इसका भारी उपयोग करती हैं।
पूर्व अधिकारी डग रैंड के शब्दों में, यह प्रोग्राम दो हिस्सों में बंट चुका है—
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पारंपरिक कंपनियां, जो लंबी अवधि का रोजगार और नागरिकता का रास्ता देती हैं।
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स्टाफिंग एजेंसियां, जो विदेशी कर्मचारियों को “किराए” पर बड़ी कंपनियों को देती हैं।
नया शुल्क और उसका असर
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि $100,000 शुल्क से सिस्टम में पारदर्शिता आएगी और “गेमिंग द सिस्टम” यानी धोखाधड़ी की संभावना कम होगी।
लेकिन क्या यह वास्तव में होगा?
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टेक कंपनियों के लिए यह एक बड़ा वित्तीय बोझ है।
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भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स, जो H-1B पर सबसे ज़्यादा निर्भर हैं, के लिए यह कदम करियर के अवसरों को सीमित कर सकता है।
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आलोचकों का मानना है कि इससे छोटे और मिड-साइज़ स्टार्टअप्स को झटका लगेगा, क्योंकि वे इतना भारी शुल्क नहीं चुका पाएंगे।
हालिया बदलाव और विवाद
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2024 में H-1B लॉटरी में आवेदन लगभग 40% कम हो गए।
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USCIS ने अब यह नियम लागू किया है कि एक उम्मीदवार सिर्फ एक बार लॉटरी में शामिल हो सकता है, चाहे उसके पास कितने भी ऑफर हों।
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लेबर यूनियन AFL-CIO चाहती है कि वीज़ा लॉटरी की बजाय सबसे अधिक वेतन देने वाली कंपनियों को मिले।
व्यक्तिगत दृष्टिकोण
मैंने भारत के कई आईटी प्रोफेशनल्स से बात की है जो सालों से अमेरिका में नौकरी पाने का सपना देखते हैं। उनके लिए यह शुल्क किसी “ड्रीम और रियलिटी के बीच की दीवार” जैसा है। छोटे शहरों के टैलेंटेड इंजीनियर, जिनके लिए H-1B एकमात्र रास्ता था, अब शायद अपनी रणनीति बदलने को मजबूर होंगे।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप का H-1B वीज़ा पर $100,000 शुल्क वाला फैसला केवल एक इमिग्रेशन नीति नहीं है, बल्कि वैश्विक टैलेंट फ्लो और टेक इंडस्ट्री पर सीधा असर डालने वाला कदम है।