बेंगलुरु में आयोजित हिंदी दिवस कार्यक्रम विवादों में घिर गया। कर्नाटक रक्षण वेदिका (Karave) के प्रदर्शन के बाद रेलवे विभाग द्वारा आयोजित यह आयोजन रद्द कर दिया गया। इस घटना ने बेंगलुरु हिंदी दिवस विवाद को और गहरा कर दिया है।
बेंगलुरु में हिंदी दिवस कार्यक्रम क्यों रद्द हुआ?
रेलवे विभाग ने यह कार्यक्रम गांधीनगर स्थित एक होटल में आयोजित किया था। लेकिन, करावे महिला कार्यकर्ताओं ने संगठन के प्रदेश अध्यक्ष टीए नारायणगौड़ा के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन किया। दबाव बढ़ने पर प्रशासन ने कार्यक्रम रद्द कर दिया।
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भाषा थोपने पर बढ़ा विवाद
कर्नाटक में लंबे समय से हिंदी थोपने के आरोप लगते रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि हिंदी को केंद्र सरकार का समर्थन मिलता है, जबकि कन्नड़ जैसी स्थानीय भाषाएँ उपेक्षित होती हैं।
सोशल मीडिया की प्रतिक्रियाएँ
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कई यूज़र्स ने हिंदी थोपने को “भाषायी नस्लवाद” बताया।
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कुछ लोगों ने इसे “भाषाई विभाजन को और गहराने वाला कदम” कहा।
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वहीं, कुछ ने संतुलन की अपील की और लिखा कि “भाषा युद्ध केवल समाज को बांटता है”।
कर्नाटक में भाषा राजनीति की संवेदनशीलता
यह विवाद दिखाता है कि कर्नाटक में भाषा और पहचान की राजनीति अभी भी संवेदनशील मुद्दा है। हिंदी दिवस का मक़सद भाषा को बढ़ावा देना है, लेकिन बेंगलुरु की घटना ने इसे राजनीतिक रंग दे दिया।
निष्कर्ष
बेंगलुरु हिंदी दिवस विवाद ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषा की राजनीति बेहद संवेदनशील मुद्दा है। जहाँ एक ओर हिंदी दिवस का उद्देश्य भाषा को प्रोत्साहित करना है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय भाषाओं की अस्मिता का सवाल भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
FAQs
Q1. बेंगलुरु हिंदी दिवस विवाद क्या है?
Ans: यह विवाद तब शुरू हुआ जब करावे संगठन ने रेलवे विभाग द्वारा आयोजित हिंदी दिवस कार्यक्रम का विरोध किया और आयोजन रद्द करना पड़ा।
Q2. बेंगलुरु हिंदी दिवस विवाद क्यों हुआ?
Ans: प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि हिंदी को बढ़ावा देकर स्थानीय भाषा कन्नड़ की अनदेखी की जा रही है।
Q3. बेंगलुरु हिंदी दिवस विवाद से क्या संदेश मिलता है?
Ans: यह घटना दिखाती है कि भाषा की राजनीति भारत में बेहद संवेदनशील है और इसके समाधान के लिए संतुलित दृष्टिकोण ज़रूरी है।