Doha Summit 2025 ने इज़रायल-क़तर विवाद को लेकर पूरे खाड़ी क्षेत्र (Gulf Region) की राजनीति को एक नए मोड़ पर ला दिया है। 9 सितंबर को इज़रायल द्वारा दोहा में हमास नेताओं के परिवार पर किए गए हमले ने न केवल क़तर की संप्रभुता को चुनौती दी, बल्कि अरब और इस्लामी देशों को भी सामूहिक सुरक्षा पर गंभीरता से सोचने पर मजबूर कर दिया।
GCC की संयुक्त रक्षा व्यवस्था: क्षेत्रीय सुरक्षा की नई दिशा
GCC (Gulf Cooperation Council) जिसमें सऊदी अरब, क़तर, यूएई, कुवैत, बहरीन और ओमान शामिल हैं, ने आपसी सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए ज्वाइंट डिफेंस मैकेनिज्म सक्रिय करने का ऐलान किया।
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यह व्यवस्था NATO के Article 5 की तर्ज़ पर मानी जा रही है – यानी किसी एक सदस्य देश पर हमला, पूरे समूह पर हमला समझा जाएगा।
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क़तर के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माजिद अल-अंसारी ने पुष्टि की कि जल्द ही दोहा में Unified Military Command की बैठक होगी।
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विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह मैकेनिज्म लागू हुआ तो खाड़ी क्षेत्र की सामरिक ताक़त कई गुना बढ़ जाएगी।
क़तर अमीर का तीखा बयान: “यह सिर्फ़ क़तर नहीं, पूरी क्षेत्रीय सुरक्षा पर हमला”
क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हमद अल थानी ने उद्घाटन भाषण में कहा:
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“यह हमला इज़रायल की शक्ति और अहंकार का परिणाम है।”
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“ग़ाज़ा में युद्ध ने अब तक 64,800 से अधिक फ़लस्तीनियों की जान ली है, और इज़रायल का मक़सद शांति नहीं बल्कि वार्ता को नाकाम करना है।”
उनका यह बयान खाड़ी और इस्लामी देशों के बीच एकजुटता बढ़ाने में अहम साबित हुआ।
अरब और इस्लामी देशों की प्रतिक्रियाएँ
दोहा समिट में कई देशों ने सख़्त रुख अपनाया:
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तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान ने कहा कि इज़रायल पर आर्थिक दबाव डालना ज़रूरी है।
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मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने चेतावनी दी कि “यह हमला शांति समझौतों को बर्बाद कर देगा।”
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पाकिस्तान ने UN से इज़रायल की सदस्यता निलंबित करने की मांग की और अरब-इस्लामिक टास्क फोर्स बनाने का प्रस्ताव दिया।
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मलेशिया और ईरान ने इज़रायल से सभी राजनयिक और व्यापारिक संबंध खत्म करने की अपील की।
अमेरिका और पश्चिमी दबाव की भूमिका
GCC महासचिव ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अपील की कि वे इज़रायल पर दबाव डालें।
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“अमेरिका के पास इज़रायल पर प्रभाव है, अब उसे इस्तेमाल करने का समय है,” उन्होंने कहा।
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अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने तेल अवीव जाकर नेतन्याहू से मुलाकात की और दोहा में वार्ता के लिए पहुंचे।
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यह दर्शाता है कि खाड़ी संकट अब सीधे वॉशिंगटन-तेल अवीव-दोहा त्रिकोण में बदल चुका है।
विशेषज्ञों की राय: “परिवर्तन की शुरुआत”
इटली के प्रोफेसर आंद्रेआ डेस्सी का कहना है:
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“यह समिट संकेत देती है कि अरब-इस्लामी देशों का लहजा बदल रहा है। अब सामूहिक सुरक्षा आर्किटेक्चर पर गंभीर चर्चा शुरू हो चुकी है।”
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हालांकि उन्होंने चेतावनी दी कि “बयानबाज़ी से आगे बढ़कर ठोस कदम उठाने में अभी लंबा रास्ता तय करना है।”
निष्कर्ष: दोहा समिट का महत्व और आगे का रास्ता
Doha Summit 2025 ने भले ही ठोस आर्थिक या सैन्य कार्रवाई की घोषणा नहीं की, लेकिन इसका महत्व राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर बहुत बड़ा है।
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पहली बार GCC और OIC ने खुलकर क़तर की सुरक्षा के लिए एकजुटता दिखाई।
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इस्लामी देशों ने इज़रायल के “विस्तारवादी विज़न” के ख़िलाफ़ साझा रुख अपनाया।
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आगे की चुनौती यह होगी कि क्या ये देश सिर्फ़ बयानबाज़ी तक सीमित रहेंगे, या वाकई आर्थिक प्रतिबंध, सैन्य सहयोग और संयुक्त कार्रवाई जैसे कदम उठाएंगे।
👉 टेकअवे: दोहा समिट ने अरब और इस्लामी देशों को यह एहसास दिलाया है कि इज़रायल की आक्रामक नीतियों का जवाब सामूहिक रूप से देना होगा। आने वाले महीनों में इस फैसले का असर खाड़ी सुरक्षा और वैश्विक राजनीति दोनों पर गहरा पड़ेगा।