हमारे देश में डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming) किसानों की आय का एक प्रमुख जरिया है। लेकिन क्या आपने कभी एक ऐसे डेयरी फार्म के बारे में सोचा है जहाँ न तो मक्खी-मच्छर हों, न ही बीमारियों का डर, और जहाँ दूध से ज्यादा कमाई गोबर और गोमूत्र से होती है?
आज हम आपको राजस्थान के कोटपुतली के पास स्थित एक ऐसे ही लो कॉस्ट डेयरी फार्म (Low Cost Dairy Farm) की सैर कराएंगे। यहाँ 120 साहीवाल गायों (Sahiwal Cows) को पाला जाता है, जिनसे निकलने वाले A2 दूध को ₹90 प्रति लीटर तक बेचा जाता है और घी ₹1250 प्रति किलो के हिसाब से। आइए जानते हैं इस सफलता के पीछे के राज।
सही नस्ल का चुनाव: क्यों चुनी साहीवाल गाय?
डेयरी फार्मिंग की सफलता की पहली सीढ़ी है सही नस्ल (Breed Selection) का चुनाव। फार्म के मालिक ने शुरुआत में गिर नस्ल समेत कई ब्रीड्स का अध्ययन किया, लेकिन आखिरकार उनकी पसंद साहीवाल नस्ल (Sahiwal Breed) ही बनी। इसके पीछे कारण हैं:
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जलवायु अनुकूलन: यह नस्ल उच्च तापमान (High Temperature) में भी आसानी से रह सकती है।
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कम चारा खपत: यह गायें कम खाती हैं, जिससे चारे का खर्च कम होता है।
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रोग प्रतिरोधक क्षमता: इनमें आम बीमारियाँ (Common Diseases) जल्दी नहीं होतीं।
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अच्छा दुग्ध उत्पादन: उचित देखभाल से यह 12-13 लीटर दूध 6-8 महीने तक नियमित देती हैं।
एचएफ vs देसी नस्ल: क्या है बेहतर?
नए किसान अक्सर इस दुविधा में रहते हैं। एचएफ (HF) या जर्सी गायें दूध तो ज्यादा देती हैं, लेकिन उनकी देखभाल का खर्च, बीमारियों का खतरा और उनके आगे चलकर ब्याने (Breeding) में आने वाली दिक्कतें ज्यादा होती हैं। वहीं, देसी गायों का A2 दूध (A2 Milk) बाजार में ₹120-150 प्रति लीटर तक बिकता है, जिससे लंबे समय में यह ज्यादा फायदेमंद साबित होती हैं।
डेयरी फार्म का लो-कॉस्ट और प्राकृतिक डिजाइन
इस फार्म की सबसे खास बात है इसकी प्राकृतिक और कम लागत वाली संरचना (Low Cost Structure)। यहाँ गायों को कैद करके नहीं, बल्कि प्रकृति के अनुकूल environment में रखा गया है।
शेड का निर्माण और प्रबंधन
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पर्याप्त स्थान: प्रत्येक गाय को बैठने के लिए 10×10 फीट का स्थान और घूमने-फिरने के लिए इससे दोगुना open area दिया गया है।
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प्राकृतिक फर्श: गायों के बैठने की जगह पर भी सीमेंट नहीं, बल्कि मिट्टी का फर्श बनाया गया है। इससे पशुओं को प्राकृतिक महसूस होता है और पेट में सीमेंट/कंक्रीट जाने जैसी समस्याएँ नहीं होतीं।
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छायादार वातावरण: फार्म के चारों ओर पेड़-पौधे लगाए गए हैं ताकि गायों को प्राकृतिक छाया मिल सके।
प्लास्टिक ड्रम से बनी अनोखी नांद (Feeder)
फार्म में पारंपरिक सीमेंट की नांद की जगह प्लास्टिक के ड्रम (Plastic Drum) का इस्तेमाल किया गया है।
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बनाने का तरीका: एक प्लास्टिक के ड्रम को horizontal काटकर, लोहे के structure में नट-बोल्ट से कस दिया जाता है।
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फायदे:
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साफ करने में आसान।
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सीमेंट की तरह पशु के पेट में जाकर नुकसान नहीं पहुँचाती।
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लागत बहुत कम: ड्रम ₹700 का और कटवाने में ₹50 का खर्च। हर 5 साल में आसानी से बदला जा सकता है।
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गायों की देखभाल और बीमारियों पर जीरो खर्च का राज
इस फार्म पर बीमारियों (Diseases) का नामोनिशान तक नहीं है। लिंपी स्किन डिजीज जैसे प्रकोप के समय भी यहाँ की एक भी गाय प्रभावित नहीं हुई। इसका राज है प्रकृति के साथ तालमेल।
1. अग्निहोत्र (Agnihotra) और गंध चिकित्सा
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वैज्ञानिक पद्धति: रोज सुबह-शाम अग्निहोत्र (एक specific हवन) किया जाता है। यह पूरे 7 एकड़ के area के environment को sanitize कर देता है, कीटाणु और वायरस को दूर रखता है।
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गंध चिकित्सा: गौ-कंडे के धुएं के साथ सुगंधित चीजें (जैसे लोबान, गुग्गल, सूखे फूल) जलाई जाती हैं। इस सुगंधित वातावरण (Aromatic Environment) से सिर्फ अच्छे पक्षी ही आकर्षित होते हैं, मक्खी-मच्छर नहीं।
2. प्राकृतिक उपचार के फार्मूले
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त्वचा रोग के लिए: 1 लीटर पानी में 1 ग्राम अग्निहोत्र भस्म और 1 ग्राम फिटकरी मिलाकर गायों को नहलाने से चर्म रोग दूर रहते हैं।
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थनेला/खुरपका के लिए: एलोवेरा के गूदे में हल्दी मिलाकर थनों पर लगाएं। साथ ही, गायों को अनार के छिलके और नींबू खिलाएं।
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पोषण के लिए: अग्निहोत्र की भस्म, जिसमें 48 प्रकार के minerals होते हैं, को चारे में मिलाया जाता है। इससे पशु के पोषण (Nutrition) की कमी दूर होती है।
संतुलित आहार: गायों को क्या खिलाएं?
गायों के आहार (Balanced Diet) में सूखे और हरे चारे का balance (60:40 या 50:50) बनाए रखना जरूरी है।
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सूखा चारा: गेहूं का भूसा, बाजरे का भूसा, ग्वार आदि।
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हरा चारा: नेपियर घास, मोरिंगा (सहजन) की पत्तियां, कासनी, लेमन ग्रास आदि। मोरिंगा एक सुपर फूड है जो पशु के health के लिए बेहद फायदेमंद है।
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षड् रस फार्मूला: दूध का स्वाद बढ़ाने के लिए छाछ और आंवले का एक special mixture बनाकर पिलाया जाता है। इससे दूध का taste improve होता है।
गोबर और गोमूत्र: दूध से ज्यादा कमाई का जरिया
इस फार्म के मालिक का कहना है कि उन्हें दूध से जितनी आमदनी नहीं होती, उससे कहीं ज्यादा गोबर और गोमूत्र (Cow Dung and Urine) से होती है। यहाँ waste कुछ भी नहीं है।
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बायोगैस: गोबर से 6 क्यूबिक मीटर के दो प्लांट लगे हैं, जिससे मिलने वाली गैस से cooking और बत्तियाँ चलती हैं।
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वर्मीकम्पोस्ट: बायोगैस से निकले waste को vermicompost में बदल दिया जाता है, जो organic farming के लिए बेहतरीन खाद है।
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गोमूत्र के उत्पाद: गोमूत्र से various types के अर्क (गिलोय, तुलसी), पंचगव्य और सजीव जल बनाया जाता है, जो खेती में बहुत काम आता है।
दूध का उत्पादन और मार्केटिंग
लगभग 40-50 गायें हमेशा दूध देने की स्थिति में रहती हैं, जिससे साल भर production बना रहता है।
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दूध की बिक्री: A2 दूध को bottle में pack करके दिल्ली-NCR में supply किया जाता है। transportation cost के हिसाब से इसकी कीमत ₹72 से लेकर ₹90 प्रति लीटर तक मिलती है।
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घी की बिक्री: शुद्ध देसी घी ₹1250 प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है।
ऑर्गेनिक और A2 सर्टिफिकेशन कैसे लें?
अगर आप commercial level पर A2 दूध बेचना चाहते हैं, तो certification जरूरी है। APEDA द्वारा मान्यता प्राप्त certification agencies (जैसे राजस्थान स्टेट ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन, इकोसर्ट, एसजीएस) से संपर्क करें। वे आपके फार्म का inspection करके certificate देंगे, जिससे आपके दूध की market value और price दोनों बढ़ जाएगी।
नए लोगों के लिए महत्वपूर्ण सलाह
अगर आप नौकरी छोड़कर डेयरी फार्मिंग शुरू करना चाहते हैं, तो इन बातों का ध्यान रखें:
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एकदम से स्विच न करें: पहले छोटे स्तर पर 3-5 पशुओं से start करें। weekends पर खुद देखभाल करके experience लें।
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बड़े loan से बचें: बिना experience के बैंक loan लेकर बड़ा फार्म खोलना risk भरा हो सकता है।
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मार्केट रिसर्च करें: पहले research कर लें कि आपके area में किस प्रकार के दूध (गाय, भैंस, A2) की demand है।
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मिश्रित मॉडल: आप चाहें तो देसी गाय, एचएफ और भैंस तीनों को mix करके एक mixed model भी try कर सकते हैं।
निष्कर्ष: प्रकृति के साथ जुड़कर ही है सफलता
यह success story हमें सिखाती है कि डेयरी फार्मिंग में भारी-भरकम structure और foreign breeds ही सफलता की गारंटी नहीं हैं। अपनी देसी नस्लों (Desi Breeds) को प्रकृति के अनुकूल environment में रखकर, आयुर्वेदिक और प्राकृतिक तरीकों से healthy रखकर, और गोबर-गोमूत्र जैसे by-products का सही उपयोग करके हम एक लाभकारी और sustainable डेयरी बिजनेस खड़ा कर सकते हैं।
कुंजी सिर्फ प्रकृति को समझने और उसके साथ तालमेल बिठाकर चलने में है।