पिपरहवा स्तूप अवशेष

127 साल की खोज और पिपरहवा स्तूप: बुद्ध की अस्थियों का इतिहास

लगभग ढाई हजार साल पहले, महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन के 79 वसंत पूरे किए। तब वे शाक्य मुनि कहलाने लगे थे। उनके आसन के ठीक एक तरफ शिष्य आनंद और सामने कुछ भिक्षु अनुयायी बैठे थे।

जैसे-जैसे शरीर बूढ़ा हो गया, आनंद ने पूछा:

“शाक्य मुनि, आपके जाने के बाद क्या प्रक्रिया होनी चाहिए?”

बुद्ध कुछ समय शांत रहे और फिर बोले:

“मैं अब वृद्ध हो चला हूं। मेरी यात्रा अब अंत के समीप आ रही है। जब तथागत बाहरी वस्तुओं पर ध्यान देना बंद कर देते हैं, तभी उनका शरीर सुकून में होता है। इसलिए तुम स्वयं अपने दीपक बनो। अप्पदीपो भव।

यह संदेश आगे चलकर करोड़ों लोगों के जीवन में आत्मज्ञान और प्रेरणा का मार्गदर्शन बना।


🟢 आनंद का दूसरा सवाल और बुद्ध का उत्तर

आनंद ने फिर पूछा:

“महात्मा, आपके निर्वाण के बाद क्या होगा?”

बुद्ध ने एक कटोरी में चावल भरे, उसे एक तस्तरी पर पलट दिया और कहा:

“जब अंतिम क्रिया करो तो मेरी अस्थियों के ऊपर एक स्तूप बना देना।”

जॉन हटिंगटन ने अपने शोध में महापरिनिर्वाण सूत्र के हवाले से बताया कि:

  • बुद्ध वैशाली में बारिश के दौरान रुके

  • फिर कपिलवस्तु और श्रावस्ती की ओर गए

  • पावा, कुंडग्राम के आम्रवन में रुके

  • कुशीनारा में मल्य शासकों के यहां उन्होंने अंतिम सांस ली


🟡 महापरिनिर्वाण के बाद अवशेषों का बंटवारा

483 ईसा पूर्व, कुशीनारा (आधुनिक उत्तर प्रदेश) में बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ। उनके अनुयायियों ने अपने-अपने हिस्सों का दावा किया:

  • कुशीनारा के मल्य: “बुद्ध हमारे हैं”

  • कपिलवस्तु के शाक्य ने भी हक जताया

  • मगध के राजा अजातशत्रु भी आए

इस दुविधा को सुलझाने के लिए आनंद ने बीच-बचाव किया और द्रोण नामक ब्राह्मण ने सुझाव दिया कि आठ प्रमुख स्थानों पर बुद्ध के अवशेष सुरक्षित किए जाएं।

⬛ आठ प्रमुख स्तूप स्थल:

  1. राजगृह

  2. वैशाली

  3. कपिलवस्तु

  4. अलक्पा

  5. रामग्राम

  6. वेथ

  7. दीप

  8. पावा और कुशीनारा

  9. पिपरहवा

(यहां एक इन्फोग्राफिक जोड़ें जिसमें 8+1 स्तूपों का मानचित्र दिखाया जाए)

इन जगहों पर बुद्ध की अस्थियां और बहुमूल्य वस्तुएं स्तूपों में रखी गईं। ये स्तूप शारीरिक स्तूप कहलाए और सबसे पुराने, पवित्र स्तूप माने गए।


🟢 पिपरहवा स्तूप का भौगोलिक महत्व

पिपरहवा आज के उत्तर प्रदेश के गोरखपुर संभाग, सिद्धार्थनगर जिले में स्थित है।

  • नेपाल की सीमा से सिर्फ कुछ किलोमीटर दूर

  • लुंबिनी, बुद्ध का जन्मस्थल, इसके पास नेपाल की तराई में स्थित है

बुद्ध का जन्म लगभग छठी सदी ईसा पूर्व में हुआ और वे पहले सिद्धार्थ, शाक्य वंश के राजकुमार थे। कपिलवस्तु में अपने प्रारंभिक तीन दशक उन्होंने बिताए।
बाद में ज्ञान की खोज में उन्होंने घर छोड़ दिया और बोधि वृक्ष के नीचे तपस्या कर ज्ञान प्राप्त किया। यही से वे बुद्ध बने और उन्होंने मध्यम मार्ग का सिद्धांत दिया, जो आज भी प्रासंगिक है।


🟢 भारत में ब्रिटिश काल का दौर

1890 के दशक में भारत अंग्रेजी हुकूमत के अधीन था। खराब नीतियों और अकाल की स्थिति के कारण खेती से वसूली घट रही थी। ब्रिटिश सरकार ने सिंचाई के साधन बढ़ाने और नई जमीनें समतल करने का काम शुरू किया।

पिपरहवा और आसपास का इलाका उस समय बर्दपुर जमींदारी का हिस्सा था, जो विलियम क्लैक्सन पेपे के अधीन था।


🟡 पहली खुदाई और बेशकीमती अवशेषों की खोज

जनवरी 1898 में, पेपे ने टीले की पहली खुदाई करवाई।

  • जमीन सपाट करने के दौरान पेपे को पुराना स्ट्रक्चर दिखाई दिया

  • लगभग 20 फीट गहराई तक खुदाई करने पर उन्हें अद्भुत खजाना मिला

🔹 संदूक में क्या मिला?

  1. 5 छोटे बर्तन

  2. सोने, चांदी, मोती, कर्नेलियन, पुखराज, गारनेट, मूंगा सहित लगभग 1800 रत्न

  3. हड्डियां और राख

  4. एक बर्तन पर पाली लिपि में उकेरा गया शिलालेख

शिलालेख का अर्थ:

“यह स्थान बुद्ध के अवशेषों के लिए उनके शाक कुल के भाई, बहन, बच्चों और पत्नियों द्वारा समर्पित किया गया।”

महत्व: यह खोज बुद्ध से जुड़े जरूरी साक्ष्य के रूप में मानी गई।


🔵 रिपोर्टिंग और ब्रिटिश अधिकारियों का योगदान

पेपे ने रॉयल एशियाटिक सोसाइटी, लंदन को रिपोर्ट भेजी और खुदाई का नक्शा भी प्रस्तुत किया।
साथ ही उन्होंने डॉक्टर फ्यूरर (पुरातत्व विभाग सहायक सर्वेक्षक) और कलेक्टर विंसेंट स्मिथ को भी जानकारी दी।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  • विंसेंट स्मिथ ने आगे चलकर भारत के इतिहास को लिखा

  • खुदाई में मिला पत्थर का भारी संदूक और अवशेष भारतीय इतिहास में अमूल्य योगदान साबित हुए


🟠 थाईलैंड का कनेक्शन

जैसे ही खोज की खबर फैली, सियाम (आज का थाईलैंड) के भिक्षु राजकुमार जिनवर वंश उत्तर भारत आए।

  • उन्होंने बुद्ध के अवशेषों में एक हिस्सा मांगा

  • ब्रिटिश सत्ता ने शर्त रखी कि थाईलैंड को दिया गया हिस्सा बर्मा (म्यांमार) और सिलोन (श्रीलंका) को भी बाँटना होगा

  • राजा राम पंचम ने इस शर्त को स्वीकार किया

अर्थ: इस तरह बुद्ध के अवशेषों का अंतरराष्ट्रीय बंटवारा शुरू हुआ।


🔹 अवशेषों का भारत और कोलकाता में संग्रह

  • अधिकांश अवशेष कोलकाता के भारतीय संग्रहालय भेजे गए (तब इसे इंपीरियल म्यूजियम ऑफ कोलकाता कहा जाता था)

  • इसमें शामिल थे: 5 कलश, पत्थर का संदूक, 1500+ बहुमूल्य रत्न

विलियम पेपे का योगदान:

  • पेपे को खोज के कारण अवशेषों में से छठा हिस्सा मिला

  • पेपे बाद में अपने देश लौट गए, लेकिन 1920-1936 में वर्धपुर लौटकर प्रबंधकीय ड्यूटी निभाई

 

🟢 थाईलैंड और अंतरराष्ट्रीय बंटवारा

1898 में पिपरहवा स्तूप से अवशेष मिलने के बाद, सियाम (आज का थाईलैंड) के भिक्षु राजकुमार जिनवर वंश उत्तर भारत आए।

  • उन्होंने बुद्ध की अस्थियों में से एक हिस्सा मांगा

  • ब्रिटिश सरकार ने अनुमति दी, लेकिन शर्त रखी कि थाईलैंड को दिया गया हिस्सा बर्मा (म्यांमार) और सिलोन (श्रीलंका) के साथ साझा किया जाए

  • राजा राम पंचम ने इसे स्वीकार किया

इस तरह बुद्ध के अवशेष भारत और एशिया के विभिन्न हिस्सों में फैल गए।


🟡 ब्रिटेन और पेपे परिवार की भूमिका

विलियम पेपे के रिटायर होने के बाद, उनका बेटा हमफ्रे पेपे वर्धपुर स्टेट का मैनेजर बना।

  • 1937 में हमफ्रे ने पिपरहवा स्तूप से मिले अवशेषों का हिस्सा ब्रिटेन ले जाया

  • इस हिस्से को दुनिया भर में एक्सिबिशन (जैसे न्यूयॉर्क, सिंगापुर) में दिखाया गया

  • इस समय तक, अवशेषों की विश्व स्तर पर पहचान बन चुकी थी

🔹 खोज का महत्व

  • अवशेषों में सोने-चांदी के बर्तन, बहुमूल्य रत्न और हड्डियां शामिल थीं

  • ये वस्तुएं बुद्ध के जीवन और इतिहास के असली प्रमाण मानी जाती हैं


🔵 भारत में अवशेषों की वापसी

जुलाई 2025 में, भारत सरकार ने गोदरेज इंडस्ट्रीज ग्रुप के साथ मिलकर 127 साल बाद पिपरहवा स्तूप के अवशेष भारत वापस लाए।

🔹 कौन से अवशेष वापस आए?

  • विलियम पेपे परिवार के पास मौजूद दूसरे चरण के बहुमूल्य रत्न

  • सोने-चांदी के बर्तन

  • लगभग 300 नायाब निशानियां

ये अवशेष पहले हांगकांग में रखे गए थे, और अब राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में सुरक्षित हैं।


🟠 पिपरहवा स्तूप के तीन निर्माण चरण

पिपरहवा स्तूप के उत्खनन में पता चला कि इसे तीन चरणों में बनाया गया:

  1. पहला चरण: महापरिनिर्वाण के तुरंत बाद, लगभग सवा 5 फीट डायमीटर

  2. दूसरा चरण: मौर्य काल में, पक्की ईंट और चावल की भूसी से ढकाव

  3. तीसरा चरण: कुषाण काल में, गोलाकार क्षेत्र को स्क्वायर में बदलकर ऊँचाई 10 गुना बढ़ाई, चारों तरफ भिक्षुओं के लिए विहार बनाए गए


🟢 पिपरहवा स्तूप की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर

पिपरहवा स्तूप, उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में स्थित, बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तुरंत बाद बनाए गए शारीरिक स्तूपों में से एक है।

🔹 विशेषताएँ

  • मूल अवशेष: हड्डियां और राख

  • बहुमूल्य वस्तुएं: सोना, चांदी, मोती, कर्नेलियन, पुखराज, गारनेट, मूंगा

  • निर्माण के तीन चरण: महापरिनिर्वाण के बाद, मौर्य काल, और कुषाण काल

  • स्तूप के चारों तरफ भिक्षुओं के लिए विहार

यह स्तूप बुद्ध की साझा विरासत का प्रतीक है और दुनिया भर में बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।


🟡 2025 में अवशेषों की भारत वापसी

जुलाई 2025 में, भारत सरकार और गोदरेज इंडस्ट्रीज ग्रुप ने 127 साल बाद अवशेषों को भारत लौटाया।

  • कुल 300 नायाब निशानियां

  • विलियम पेपे परिवार द्वारा संग्रहित बहुमूल्य रत्न और सोने-चांदी के बर्तन

  • अब ये अवशेष राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में सुरक्षित हैं

इससे न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर मजबूत हुई, बल्कि विश्व स्तर पर बौद्ध इतिहास में पुनः गौरव स्थापित हुआ।


🔵 बुद्ध का संदेश: अप्पदीपो भव

बुद्ध का अंतिम संदेश:

“जब तथागत बाहरी वस्तुओं पर ध्यान देना बंद कर देते हैं, तभी उनका शरीर सुकून में होता है। इसलिए तुम स्वयं अपने दीपक बनो। अप्पदीपो भव।

यह संदेश आज भी आत्मज्ञान और जीवन के मध्यम मार्ग के लिए प्रेरणा है।


❓ FAQs: पिपरहवा स्तूप और बुद्ध के अवशेष

Q1: पिपरहवा स्तूप कहाँ स्थित है?
A: उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले, नेपाल की सीमा के पास।

Q2: पिपरहवा स्तूप में कौन-कौन से अवशेष मिले?
A: हड्डियां, राख, सोना, चांदी, मोती, कर्नेलियन, पुखराज, गारनेट, मूंगा, और पाली शिलालेख वाले बर्तन।

Q3: अवशेषों की भारत वापसी कब हुई?
A: जुलाई 2025 में गोदरेज इंडस्ट्रीज और भारत सरकार के सहयोग से।

Q4: पिपरहवा स्तूप का निर्माण कब हुआ?
A: तीन चरणों में:

  1. महापरिनिर्वाण के बाद

  2. मौर्य काल

  3. कुषाण काल

Q5: बुद्ध का अंतिम संदेश क्या था?
A: अप्पदीपो भव — “स्वयं अपने दीपक बनो”


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top